29 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग की कार्यशैली को गंभीरता से लेते हुए जिस तरह दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, वह अपने आप में अभूतपूर्व है और प्रदेश की धामी सरकार तथा निर्वाचन आयोग की पोल खोलता है यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का। दसौनी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी का स्पष्ट मत है कि यह जुर्माना जनता के टैक्स के पैसे से नहीं, बल्कि राज्य निर्वाचन आयोग में बैठे अधिकारियों की तनख्वाह से वसूला जाना चाहिए। दसौनी ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि आज से पहले किसी भी राज्य के निर्वाचन आयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस प्रकार का दंड या जुर्माना नहीं लगाया गया था। यह पहली बार हुआ है क्यों उत्तराखंड के राज्य निर्वाचन आयोग पर 200000 का जुर्माना निर्धारित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि आयोग किस हद तक पक्षपातपूर्ण और लापरवाह तरीके से काम कर रहा है। गरिमा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी कि आयोग का आदेश क़ानून के विपरीत था, लोकतंत्र की जड़ों को हिलाने वाली बात है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि हम यह भी पूछना चाहते है कि पंचायती राज सचिव इस पूरे मामले पर क्या रुख रखते हैं? क्या सचिव महोदय आयोग की इस लापरवाही और असंवैधानिक आदेश पर चुप बैठेंगे या जनता के सामने सच्चाई रखेंगे? कांग्रेस की मांग है कि तत्काल प्रभाव से राज्य निर्वाचन आयोग में बैठे सभी अधिकारियों की छुट्टी की जाए, ताकि लोकतंत्र पर जनता का विश्वास बहाल हो सके। गरिमा ने कहा कि प्रदेश की जनता अब यह जानना चाहती है कि निर्वाचन आयोग किसके दबाव में काम कर रहा हैं? दसौनी ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा कि चुनावी प्रक्रिया में लगातार हो रही गड़बड़ियों का जिम्मेदार कौन है? क्या लोकतंत्र को बचाने की कोई चिंता इस सरकार और आयोग को है? कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि प्रदेश सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग तत्काल इस पर सार्वजनिक स्पष्टीकरण दें और संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करें।